रविवार, 8 दिसंबर 2024

राजस्व लेखपाल उपेक्षित कर्मचारी

लेखपाल: सरकारी तंत्र का उपेक्षित श्रमिक

लेखपाल का जीवन संघर्षों और उपेक्षाओं से भरा हुआ है। लेखपाल ही प्रशासन की रीढ़ की हड्डी है।राजस्व व्यवस्था का आधार होते हुए भी वह सरकारी मशीनरी के सबसे उपेक्षित और शोषित कर्मचारियों में से एक है। उसका काम केवल दफ्तर की फाइलों तक सीमित नहीं है—वह खेत-खलिहानों में धूल-मिट्टी से जूझता है, विवादित सीमाओं को हल करता है, और आपदाओं में लोगों की मदद के लिए बिना रुके दौड़ता है। फिर भी, उसे "नॉन-टेक्निकल" पद कहकर उसका हर श्रम, हर तकनीकी कौशल, और उसकी समर्पित सेवा का मज़ाक बनाया जाता है। यह लेखपालों की उस दर्दनाक वास्तविकता की कहानी है, जो अनदेखी की परतों में दबकर तिल-तिल घुट रही है।




 काम का बोझ और जीने की मजबूरी

1. सीमांकन: जान को जोखिम में डालकर काम
विवादित भूमि के सीमांकन में लेखपालों को अक्सर स्थानीय दबाव और गालियों का सामना करना पड़ता है। कई बार मारपीट और हिंसा का खतरा भी मंडराता है। लेकिन सुरक्षा के नाम पर सरकार आंखें मूंदे रहती है। उन्हें अकेले ही हर चुनौती से निपटना पड़ता है—ना कोई सुरक्षाकर्मी, ना कोई सहयोग।


 2. आपदा के समय पहला और आखिरी सिपाही
बाढ़, सूखा, ओलावृष्टि जैसी आपदाओं में लेखपाल सबसे पहले मोर्चे पर होता है। पानी से भरे गांवों और खेतों में घुटनों तक कीचड़ में डूबकर सर्वेक्षण करता है। राहत कार्य की रिपोर्टिंग से लेकर नुकसान का आकलन तक सब कुछ उसी के कंधों पर होता है। मगर उसके हिस्से में न कोई प्रशंसा आती है, न कोई अतिरिक्त भत्ता।


 3.. छुट्टी का सपना: परिवार से दूर, काम के बोझ तले दबे
लेखपाल के लिए छुट्टी लेना लगभग असंभव है। हर विभाग को उसकी जरूरत है—चुनाव में ड्यूटी, जनगणना, सर्वेक्षण, सरकारी योजनाओं का प्रचार। वह दिन-रात प्रशासन का बोझ ढोता है, लेकिन बदले में बस तिरस्कार और थकान पाता है। परिवार से दूर रहना उसकी नियति बन चुकी है, और निजी जीवन केवल एक सपना बनकर रह गया है।


 4. तकनीकी कौशल, मगर मान्यता नहीं
लेखपाल को डिजिटल रिकॉर्ड संभालने होते हैं, जीपीएस और अन्य आधुनिक उपकरणों से काम करना पड़ता है। लेकिन इन सबके बावजूद उसे "नॉन-टेक्निकल" घोषित करके उसका हक छीन लिया गया है। अगर उसका पद तकनीकी मान लिया गया, तो वेतन और प्रमोशन में सुधार करना पड़ेगा—लेकिन सरकारी तंत्र के लिए उसकी मेहनत का मूल्य देना आसान नहीं है।





 लेखपाल का नॉन-टेक्निकल दर्जा: तंत्र की चालाकी 

लेखपाल के पद को जानबूझकर नॉन-टेक्निकल श्रेणी में रखा गया है ताकि उसकी मेहनत का उचित मूल्य न देना पड़े। इसका मतलब है कि:

 1. वेतन में सुधार से बचना: टेक्निकल घोषित करने पर लेखपाल का वेतनमान और भत्ते बढ़ाने होंगे। इससे सरकार के खर्चे बढ़ जाएंगे, जो उसे मंजूर नहीं।


2. पदोन्नति की संभावनाएं रोकना: यदि इसे तकनीकी पद घोषित किया गया, तो पदोन्नति की नई संभावनाएं खुलेंगी। मगर तंत्र चाहता है कि लेखपाल उसी पद पर जीवनभर घिसता रहे।


3. हर विभाग का बेगारी मजदूर बनाए रखना: टेक्निकल बनने के बाद लेखपाल को गैर-जरूरी कामों में लगाना कठिन होगा। यही कारण है कि प्रशासन उसकी मेहनत को मान्यता देने से कतराता है।






लेखपाल: न सम्मान, न सुरक्षा, न सुविधा

लेखपाल न केवल प्रशासन का हर काम करता है, बल्कि हर मौके पर बलि का बकरा भी बनता है। जब भी कोई गड़बड़ी होती है, उसकी नौकरी खतरे में आ जाती है। ऊपर से अधिकारियों का अपमान और विभागीय दबाव उसे मानसिक और शारीरिक रूप से तोड़ देता है। वह न तो अपने बच्चों को अच्छा समय दे पाता है, न खुद के जीवन में कोई सुख देख पाता है। उसके सपने सरकारी फाइलों में दम तोड़ देते हैं, और उसकी मेहनत का कोई मोल नहीं रह जाता।




निष्कर्ष: कब मिलेगी लेखपालों को इंसाफ?

लेखपालों का जीवन संघर्ष, दर्द, और उपेक्षा की कहानी है। वे हर रोज़ अपने आत्मसम्मान को कुचलते हुए प्रशासन का बोझ ढोते हैं, मगर सरकार की नजर में वे महज "नॉन-टेक्निकल" कर्मचारी हैं। अगर उनका हक उन्हें नहीं दिया गया, तो यह न केवल लेखपालों के साथ अन्याय होगा, बल्कि पूरे तंत्र की निष्क्रियता का प्रमाण भी। समय आ गया है कि उनकी मेहनत को पहचाना जाए, उनका दर्जा बदला जाए, और उन्हें वह सम्मान और सुविधाएं दी जाएं, जिनके वे हकदार हैं।

लेखपालों की यह पीड़ा कोई व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि प्रशासनिक तंत्र की विफलता है। अगर सरकार ने अब भी उनकी आवाज़ नहीं सुनी, तो यह घाव और गहरे होंगे—और शायद फिर उन्हें भरना मुमकिन न हो।

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 धारा 220

भूमि पर प्रवेश करने की शक्ति इस संहिता के अधीन नियुक्त कोई अधिकारी, ऐसी निबन्धनों और शर्तो, जैसी विहित की जाय के अधीन रहते हुए ऐसे लोक सेवकों के साथ जिन्हें इस संहिता या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन अपने कर्तव्यों का निष्पादन करने के लिए आवश्यक समझे, किसी भी समय किसी भी भूमि पर प्रवेश कर सकता है।

शनिवार, 19 अक्टूबर 2024

लेखपाल की नौकरी तथा उनकी पीड़ा

शॉर्टकट एक रोग है

 *परिचय* 
आज के प्रशासनिक तंत्र में कार्यों को जल्दबाजी में पूरा करने की प्रवृत्ति एक गहरी समस्या बन गई है। अधिकारी अपने कर्तव्यों को निभाने की बजाय रैंकिंग और नंबर 1 पोजीशन पाने की होड़ में रहते हैं। इस दौड़ में तेजी लाने के लिए वे लेखपालों पर लगातार दबाव बनाते हैं कि वे अपने कार्यों को यथासंभव शीघ्रता से पूरा करें। इस समस्या का मुख्य असर लेखपालों पर पड़ता है, जो न केवल कई महत्वपूर्ण कार्यों को संभालते हैं, बल्कि उन्हें हमेशा इस डर में जीना पड़ता है कि कहीं उनकी कोई गलती न हो जाए। इस लेख में हम लेखपालों की जिम्मेदारियों, अधिकारियों की शॉर्टकट प्रवृत्ति के दुष्प्रभावों, और इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली समस्याओं का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।


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 *लेखपालों के विविध कार्य और उन पर बढ़ता दबाव* 

1. *खतौनी में अंश निर्धारण* 
खतौनी में अंश निर्धारण एक अत्यंत संवेदनशील कार्य है, जिसमें भूमि विवादों का निपटारा किया जाता है। यह कार्य केवल गणना का नहीं होता, बल्कि इसमें सभी हितधारकों की सुनवाई और सही रिकॉर्ड अद्यतन करना आवश्यक होता है। अधिकारियों के दबाव के कारण, लेखपालों को यह कार्य जल्दी पूरा करने के लिए कहा जाता है। त्रुटि होने पर विवाद बढ़ जाता है और मामला कोर्ट में पहुँचता है, जिसका पूरा दोष लेखपाल पर थोप दिया जाता है।


2. *वरासत जांच और निस्तारण* 
वरासत का कार्य अत्यधिक जटिल और संवेदनशील होता है, जिसमें मृतक के वास्तविक उत्तराधिकारियों का निर्धारण किया जाता है। यह प्रक्रिया पारिवारिक विवादों के कारण और भी चुनौतीपूर्ण हो जाती है। अधिकारियों के जल्दबाजी में काम पूरा करने के दबाव में, लेखपाल कई बार गलत वरासत का रिपोर्ट कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कानूनी मुकदमे उठ खड़े होते हैं।


3. *एग्रीस्टेक और खसरा सर्वे* 
भूमि रजिस्टरों का अद्यतन और एग्रीस्टेक आधारित खसरा सर्वे समय-साध्य कार्य हैं। अधिकारियों की रैंकिंग को लेकर चिंता के कारण लेखपालों पर अनावश्यक दबाव बनाया जाता है। जल्दबाजी में सर्वेक्षण में गलतियाँ हो जाती हैं, जिसका सीधा असर योजनाओं और लाभार्थियों पर पड़ता है।


4. *निर्वाचन से संबंधित कार्य* 
चुनावों के दौरान लेखपालों पर अतिरिक्त जिम्मेदारियाँ आ जाती हैं, जैसे मतदाता सूची का अद्यतन, बूथ व्यवस्था, और चुनावी प्रक्रिया का सही संचालन। सीमित समय में ये कार्य निपटाना मुश्किल होता है, लेकिन अधिकारियों का जोर रहता है कि सब कुछ तय समय पर पूरा दिखे। यदि कोई गड़बड़ी होती है, तो दोष लेखपाल पर ही आता है।


5. *घरौनी निर्माण और वितरण* 
ग्रामीणों को स्वामित्व प्रमाणपत्र (घरौनी) प्रदान करने का कार्य लेखपालों के कंधों पर होता है। अधिकारियों का लक्ष्य होता है कि अधिक से अधिक प्रमाणपत्र वितरित कर आँकड़ों में बढ़ोतरी दिखाई जाए। जल्दबाजी में सर्वेक्षण में गलतियाँ हो जाती हैं, जिसके कारण जनता का आक्रोश लेखपालों पर निकलता है।


6. *आय, जाति, निवास प्रमाणपत्र जारी करना* 
आय, जाति, और निवास प्रमाणपत्रों का सत्यापन और वितरण लेखपालों की जिम्मेदारी होती है। अधिकारियों के दबाव में, कई बार प्रमाणपत्रों का सही सत्यापन नहीं किया जाता, जिससे भविष्य में समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।


7. *IGRS (जन शिकायतों का निस्तारण)*
जन शिकायतों का त्वरित निस्तारण करने का दबाव लेखपालों पर लगातार बना रहता है। अधिकारियों का मुख्य जोर केवल आँकड़ों में सुधार पर होता है, जबकि असली समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता। शिकायतें अक्सर स्थानीय समस्याओं, जैसे भूमि विवाद या सरकारी सेवाओं की कमी से जुड़ी होती हैं। लेखपालों को इनका त्वरित निस्तारण करना होता है ताकि अधिकारी अपनी रैंकिंग में बने रहें।

8. *बेदखली कार्य* 
सरकारी भूमि पर अतिक्रमण की स्थिति में लेखपालों की जिम्मेदारी होती है कि वे उचित प्रक्रिया के तहत बेदखली का कार्य करें। जब भूमाफिया और अन्य शक्तिशाली व्यक्तियों द्वारा सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा किया जाता है, तो लेखपाल को इसे हटाने के लिए त्वरित कार्रवाई करनी होती है। अधिकारियों के दबाव के कारण, लेखपालों को कई बार बिना तैयारी के ही बेदखली करने जाना पड़ता है।

9. *अन्य विभागीय कार्यों में सहयोग* 
लेखपालों को अपने नियमित कार्यों के अलावा अन्य विभागीय कार्यों में भी सहयोग देना पड़ता है। विभिन्न विभागों से आए निर्देशों के अनुसार, लेखपालों को अपने कार्यों के साथ-साथ अन्य विभागीय कार्यों को भी समय पर निपटाने का दबाव होता है। ये कार्य भी लेखपालों के लिए एक अतिरिक्त चुनौती बन जाते हैं, जो पहले से ही अनेक जिम्मेदारियों का सामना कर रहे होते हैं।


10. *अतिरिक्त हल्का का भार* 
लेखपालों को कई बार विभिन्न हल्कों से भी अतिरिक्त कार्यभार सौंपा जाता है। जब किसी हल्के में कमी होती है या कार्य की आवश्यकता बढ़ जाती है, तो लेखपालों पर कार्य का अतिरिक्त दबाव आ जाता है। कई बार, उन्हें अपने नियमित कार्यों के साथ-साथ नए कार्यों को भी संभालना पड़ता है, जिससे उनकी कार्यक्षमता और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।




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 *अधिकारियों की रैंकिंग की होड़ और लेखपालों का शोषण* 

1. *तात्कालिक परिणामों का दबाव:* अधिकारी तात्कालिक परिणामों को प्राथमिकता देते हैं, भले ही इससे दीर्घकालिक समस्याएँ खड़ी हों।


2. *गलतियों का ठीकरा लेखपालों पर:* किसी भी गलती का पूरा दोष लेखपालों पर डाल दिया जाता है, जबकि अधिकारी स्वयं जवाबदेही से बच निकलते हैं।


3. *दंडात्मक कार्रवाई और मानसिक तनाव:* लेखपालों को अक्सर निलंबन, वेतन रोकने, या मुकदमे का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।




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 *शॉर्टकट मानसिकता से निपटने के उपाय* 

1. *कार्य योजना और समयसीमा का पुनर्निर्धारण:* लेखपालों को उनके कार्यों के लिए पर्याप्त समय और संसाधन दिए जाएँ ताकि वे बिना दबाव के काम कर सकें।


2. *प्रोत्साहन आधारित कार्य प्रणाली:* लेखपालों के प्रयासों की सराहना की जाए और उन्हें प्रोत्साहन दिया जाए, न कि केवल गलती पर दंडित किया जाए।


3. *अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करना:* कार्य में गड़बड़ी होने पर केवल लेखपालों को दोषी न ठहराकर अधिकारियों को भी जवाबदेह ठहराया जाए।


4. *मानसिक स्वास्थ्य और कार्य-जीवन संतुलन:* लेखपालों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाए और उन्हें तनावमुक्त कार्य वातावरण प्रदान किया जाए।




निष्कर्ष

शॉर्टकट प्रवृत्ति प्रशासनिक तंत्र के लिए गंभीर समस्या बन चुकी है, जिसमें अधिकारियों की रैंकिंग की होड़ का खामियाजा लेखपालों को भुगतना पड़ता है। जल्दबाजी में किए गए कार्यों में गलतियाँ स्वाभाविक हैं, लेकिन इनका पूरा दंड लेखपालों पर डाल दिया जाता है। उनके ऊपर न केवल नियमित जिम्मेदारियों का बोझ होता है, बल्कि अन्य विभागीय कार्यों में भी सहयोग करना पड़ता है। यदि प्रशासन को पारदर्शी और न्यायपूर्ण बनाना है, तो शॉर्टकट प्रवृत्ति को समाप्त कर दीर्घकालिक दृष्टिकोण से योजनाबद्ध कार्य प्रणाली अपनानी होगी। इससे न केवल कार्यों की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि लेखपालों के साथ भी न्याय सुनिश्चित होगा।

इस प्रकार, यह आवश्यक है कि हम इस समस्या की जड़ को समझें और सभी स्तरों पर एक समग्र दृष्टिकोण अपनाएँ। एक स्वस्थ कार्य वातावरण सुनिश्चित करने से न केवल लेखपालों की कार्य क्षमता में सुधार होगा, बल्कि संपूर्ण प्रशासनिक तंत्र की प्रभावशीलता भी बढ़ेगी।


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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता अध्याय 2

राजस्व संहिता 2006 अध्याय-दो



राजस्व मण्डल

में राज्य का राजस्व क्षेत्रों में विभाजन-इस संहिता के प्रयोजनों के लिए, राज्य को राजस्व क्षेत्रों में विभाजित किया जाएगा जो मंडलों में विभक्त होगा जिसमें दो या अधिक ज़िले हो सकेंगे और प्रत्येक ज़िला में दो या अधिक तहसीलें हो सकेंगी और प्रत्येक तहसील में एक या अधिक परगनें हो सकेंगे और प्रत्येक परगना में दो या इससे अधिक गांव हो सकेंगे।  

राजस्व क्षेत्रों का गठन

(1) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा निम्नलिखित को विनिर्दिष्ट कर सकती है।

(एक) उन जिलों को जिनसे मिलकर कोई मण्डल बनता हो; (दो) उन तहसीलों को जिनसे मिलकर कोई ज़िला बनता हो;

(तीन) उन गांवों को जिनसे मिलकर कोई तहसील बनती हो।

(2) राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी राजस्व क्षेत्र की सीमाओं को समामेलित, पुनःसमायोजित, विभाजित करके या किसी अन्य रीति से, वह चाहे जो भी हो, परिवर्तित कर सकती है या किसी ऐसे राजस्व क्षेत्र को समाप्त कर सकती है और किसी ऐसे राजस्व क्षेत्र का नामकरण कर सकती है

और उसके नाम में परिवर्तन कर सकती है और यदि जहाँ किसी क्षेत्र का पुनः नामकरण कर दिया जाए, तो वहाँ उक्त क्षेत्र के किसी विधि या लिखत या अन्य दस्तावेज में उसके मौलिक नाम से किए गए निर्देशों को, जब तक कि अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबन्धित न किया जाए, पुन: नामकरण किए गए क्षेत्र का निर्देश समझा जाएगा :

परन्तु किसी राजस्व क्षेत्र की सीमाओं को परिवर्तित करने के किसी प्रस्ताव पर इस उपधारा के अधीन कोई आदेश पारित करने के पूर्व राज्य सरकार आपत्तियाँ आमंत्रित करने के लिए ऐसे प्रस्तावों को विहित रूप से प्रकाशित करेगी और ऐसे प्रस्तावों के सम्बन्ध में की गई आपत्तियों पर विचार करेगी।

(3) कलेक्टर विहित रूप में प्रकाशित किसी आदेश द्वारा तहसील के गांवों को लेखपाल हलकों में और लेखपाल हलकों को राजस्व निरीक्षक हलकों में व्यवस्थित करेगा और प्रत्येक राजस्व निरीक्षक के मुख्यालय को भी उसके हल्के के भीतर विनिर्दिष्ट करेगा।

(4) इस संहिता के प्रारम्भ होने के समय यथा विद्यमान मण्डल, ज़िले, तहसील, परगने, राजस्व निरीक्षक हलके, लेखपाल हलके और गांव, जब तक कि पूर्ववर्ती उपखण्डों में उनमें कोई परिवर्तन न कर दिया जाए, इस धारा के अधीन विनिर्दिष्ट राजस्व क्षेत्र समझे जायेंगे।


सोमवार, 23 मई 2022

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 धारा 221

निरीक्षण करने और प्रतिलिपियां प्राप्त करने का अधिकार- इरा राहिता या तदधीन बनायी गयी नियमावली के अधीन तैयार किए गए या रखे गए सभी दस्तावेज, विवरण अभिलेख और रजिस्टर ऐसे समय और ऐसी शर्तों के अधीन और ऐसी फीस के भुगतान जैसी विहित की जाय, पर निरीक्षण के लिए उपलब्ध रहेंगे और कोई भी व्यक्ति विहित फीस का भुगतान करने पर ऐसे दस्तावेज, विवरण, अभिलेख या रजिस्टर की या ऐसे दस्तावेज के किसी भाग की सत्यापित प्रतिलिपि प्राप्त करने का हकदार होगा।

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 धारा 219

प्रत्यायोजन - राज्य सरकार परिषद को या अपने अधीनस्थ किसी अन्य अधिकारी या प्राधिकारी को नियमावली बनाने की शक्ति से भिन्न इस संहिता के अधीन प्रदत्त किन्हीं शक्तियों को अधिसूचना द्वारा, प्रत्यायोजित कर सकती है जिनका प्रयोग ऐसी निबन्धनों और शर्तो, जैसी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जायें, के अधीन किया जायेगा।

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 धारा 218


संहिता के उपबन्धों से छूट देने की शक्ति राज्य सरकार अपने द्वारा या केन्द्रीय सरकार द्वारा या किसी स्थानीय प्राधिकारी द्वारा स्वामित्व में रखे गए किसी भूमि को इस संहिता के सभी या किसी उपबन्ध के लागू होने से अधिसूचना द्वारा छूट प्रदान कर सकती है और इसी प्रकार किसी अधिसूचना को रद्द या उपान्तरित कर सकती है।

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उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 धारा 206

अतिक्रमण आदि के लिए शास्ति (1) कोई व्यक्ति जो (क) गांव की किसी सार्वजनिक सड़क (चकरोड सहित ), पथ या सामान्य भूमि का अतिक्रमण करता है या उसके ...