शनिवार, 19 अक्टूबर 2024

लेखपाल की नौकरी तथा उनकी पीड़ा

शॉर्टकट एक रोग है

 *परिचय* 
आज के प्रशासनिक तंत्र में कार्यों को जल्दबाजी में पूरा करने की प्रवृत्ति एक गहरी समस्या बन गई है। अधिकारी अपने कर्तव्यों को निभाने की बजाय रैंकिंग और नंबर 1 पोजीशन पाने की होड़ में रहते हैं। इस दौड़ में तेजी लाने के लिए वे लेखपालों पर लगातार दबाव बनाते हैं कि वे अपने कार्यों को यथासंभव शीघ्रता से पूरा करें। इस समस्या का मुख्य असर लेखपालों पर पड़ता है, जो न केवल कई महत्वपूर्ण कार्यों को संभालते हैं, बल्कि उन्हें हमेशा इस डर में जीना पड़ता है कि कहीं उनकी कोई गलती न हो जाए। इस लेख में हम लेखपालों की जिम्मेदारियों, अधिकारियों की शॉर्टकट प्रवृत्ति के दुष्प्रभावों, और इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली समस्याओं का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।


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 *लेखपालों के विविध कार्य और उन पर बढ़ता दबाव* 

1. *खतौनी में अंश निर्धारण* 
खतौनी में अंश निर्धारण एक अत्यंत संवेदनशील कार्य है, जिसमें भूमि विवादों का निपटारा किया जाता है। यह कार्य केवल गणना का नहीं होता, बल्कि इसमें सभी हितधारकों की सुनवाई और सही रिकॉर्ड अद्यतन करना आवश्यक होता है। अधिकारियों के दबाव के कारण, लेखपालों को यह कार्य जल्दी पूरा करने के लिए कहा जाता है। त्रुटि होने पर विवाद बढ़ जाता है और मामला कोर्ट में पहुँचता है, जिसका पूरा दोष लेखपाल पर थोप दिया जाता है।


2. *वरासत जांच और निस्तारण* 
वरासत का कार्य अत्यधिक जटिल और संवेदनशील होता है, जिसमें मृतक के वास्तविक उत्तराधिकारियों का निर्धारण किया जाता है। यह प्रक्रिया पारिवारिक विवादों के कारण और भी चुनौतीपूर्ण हो जाती है। अधिकारियों के जल्दबाजी में काम पूरा करने के दबाव में, लेखपाल कई बार गलत वरासत का रिपोर्ट कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कानूनी मुकदमे उठ खड़े होते हैं।


3. *एग्रीस्टेक और खसरा सर्वे* 
भूमि रजिस्टरों का अद्यतन और एग्रीस्टेक आधारित खसरा सर्वे समय-साध्य कार्य हैं। अधिकारियों की रैंकिंग को लेकर चिंता के कारण लेखपालों पर अनावश्यक दबाव बनाया जाता है। जल्दबाजी में सर्वेक्षण में गलतियाँ हो जाती हैं, जिसका सीधा असर योजनाओं और लाभार्थियों पर पड़ता है।


4. *निर्वाचन से संबंधित कार्य* 
चुनावों के दौरान लेखपालों पर अतिरिक्त जिम्मेदारियाँ आ जाती हैं, जैसे मतदाता सूची का अद्यतन, बूथ व्यवस्था, और चुनावी प्रक्रिया का सही संचालन। सीमित समय में ये कार्य निपटाना मुश्किल होता है, लेकिन अधिकारियों का जोर रहता है कि सब कुछ तय समय पर पूरा दिखे। यदि कोई गड़बड़ी होती है, तो दोष लेखपाल पर ही आता है।


5. *घरौनी निर्माण और वितरण* 
ग्रामीणों को स्वामित्व प्रमाणपत्र (घरौनी) प्रदान करने का कार्य लेखपालों के कंधों पर होता है। अधिकारियों का लक्ष्य होता है कि अधिक से अधिक प्रमाणपत्र वितरित कर आँकड़ों में बढ़ोतरी दिखाई जाए। जल्दबाजी में सर्वेक्षण में गलतियाँ हो जाती हैं, जिसके कारण जनता का आक्रोश लेखपालों पर निकलता है।


6. *आय, जाति, निवास प्रमाणपत्र जारी करना* 
आय, जाति, और निवास प्रमाणपत्रों का सत्यापन और वितरण लेखपालों की जिम्मेदारी होती है। अधिकारियों के दबाव में, कई बार प्रमाणपत्रों का सही सत्यापन नहीं किया जाता, जिससे भविष्य में समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।


7. *IGRS (जन शिकायतों का निस्तारण)*
जन शिकायतों का त्वरित निस्तारण करने का दबाव लेखपालों पर लगातार बना रहता है। अधिकारियों का मुख्य जोर केवल आँकड़ों में सुधार पर होता है, जबकि असली समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता। शिकायतें अक्सर स्थानीय समस्याओं, जैसे भूमि विवाद या सरकारी सेवाओं की कमी से जुड़ी होती हैं। लेखपालों को इनका त्वरित निस्तारण करना होता है ताकि अधिकारी अपनी रैंकिंग में बने रहें।

8. *बेदखली कार्य* 
सरकारी भूमि पर अतिक्रमण की स्थिति में लेखपालों की जिम्मेदारी होती है कि वे उचित प्रक्रिया के तहत बेदखली का कार्य करें। जब भूमाफिया और अन्य शक्तिशाली व्यक्तियों द्वारा सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा किया जाता है, तो लेखपाल को इसे हटाने के लिए त्वरित कार्रवाई करनी होती है। अधिकारियों के दबाव के कारण, लेखपालों को कई बार बिना तैयारी के ही बेदखली करने जाना पड़ता है।

9. *अन्य विभागीय कार्यों में सहयोग* 
लेखपालों को अपने नियमित कार्यों के अलावा अन्य विभागीय कार्यों में भी सहयोग देना पड़ता है। विभिन्न विभागों से आए निर्देशों के अनुसार, लेखपालों को अपने कार्यों के साथ-साथ अन्य विभागीय कार्यों को भी समय पर निपटाने का दबाव होता है। ये कार्य भी लेखपालों के लिए एक अतिरिक्त चुनौती बन जाते हैं, जो पहले से ही अनेक जिम्मेदारियों का सामना कर रहे होते हैं।


10. *अतिरिक्त हल्का का भार* 
लेखपालों को कई बार विभिन्न हल्कों से भी अतिरिक्त कार्यभार सौंपा जाता है। जब किसी हल्के में कमी होती है या कार्य की आवश्यकता बढ़ जाती है, तो लेखपालों पर कार्य का अतिरिक्त दबाव आ जाता है। कई बार, उन्हें अपने नियमित कार्यों के साथ-साथ नए कार्यों को भी संभालना पड़ता है, जिससे उनकी कार्यक्षमता और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।




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 *अधिकारियों की रैंकिंग की होड़ और लेखपालों का शोषण* 

1. *तात्कालिक परिणामों का दबाव:* अधिकारी तात्कालिक परिणामों को प्राथमिकता देते हैं, भले ही इससे दीर्घकालिक समस्याएँ खड़ी हों।


2. *गलतियों का ठीकरा लेखपालों पर:* किसी भी गलती का पूरा दोष लेखपालों पर डाल दिया जाता है, जबकि अधिकारी स्वयं जवाबदेही से बच निकलते हैं।


3. *दंडात्मक कार्रवाई और मानसिक तनाव:* लेखपालों को अक्सर निलंबन, वेतन रोकने, या मुकदमे का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।




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 *शॉर्टकट मानसिकता से निपटने के उपाय* 

1. *कार्य योजना और समयसीमा का पुनर्निर्धारण:* लेखपालों को उनके कार्यों के लिए पर्याप्त समय और संसाधन दिए जाएँ ताकि वे बिना दबाव के काम कर सकें।


2. *प्रोत्साहन आधारित कार्य प्रणाली:* लेखपालों के प्रयासों की सराहना की जाए और उन्हें प्रोत्साहन दिया जाए, न कि केवल गलती पर दंडित किया जाए।


3. *अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करना:* कार्य में गड़बड़ी होने पर केवल लेखपालों को दोषी न ठहराकर अधिकारियों को भी जवाबदेह ठहराया जाए।


4. *मानसिक स्वास्थ्य और कार्य-जीवन संतुलन:* लेखपालों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाए और उन्हें तनावमुक्त कार्य वातावरण प्रदान किया जाए।




निष्कर्ष

शॉर्टकट प्रवृत्ति प्रशासनिक तंत्र के लिए गंभीर समस्या बन चुकी है, जिसमें अधिकारियों की रैंकिंग की होड़ का खामियाजा लेखपालों को भुगतना पड़ता है। जल्दबाजी में किए गए कार्यों में गलतियाँ स्वाभाविक हैं, लेकिन इनका पूरा दंड लेखपालों पर डाल दिया जाता है। उनके ऊपर न केवल नियमित जिम्मेदारियों का बोझ होता है, बल्कि अन्य विभागीय कार्यों में भी सहयोग करना पड़ता है। यदि प्रशासन को पारदर्शी और न्यायपूर्ण बनाना है, तो शॉर्टकट प्रवृत्ति को समाप्त कर दीर्घकालिक दृष्टिकोण से योजनाबद्ध कार्य प्रणाली अपनानी होगी। इससे न केवल कार्यों की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि लेखपालों के साथ भी न्याय सुनिश्चित होगा।

इस प्रकार, यह आवश्यक है कि हम इस समस्या की जड़ को समझें और सभी स्तरों पर एक समग्र दृष्टिकोण अपनाएँ। एक स्वस्थ कार्य वातावरण सुनिश्चित करने से न केवल लेखपालों की कार्य क्षमता में सुधार होगा, बल्कि संपूर्ण प्रशासनिक तंत्र की प्रभावशीलता भी बढ़ेगी।


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