सोमवार, 23 मई 2022

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 धारा 221

निरीक्षण करने और प्रतिलिपियां प्राप्त करने का अधिकार- इरा राहिता या तदधीन बनायी गयी नियमावली के अधीन तैयार किए गए या रखे गए सभी दस्तावेज, विवरण अभिलेख और रजिस्टर ऐसे समय और ऐसी शर्तों के अधीन और ऐसी फीस के भुगतान जैसी विहित की जाय, पर निरीक्षण के लिए उपलब्ध रहेंगे और कोई भी व्यक्ति विहित फीस का भुगतान करने पर ऐसे दस्तावेज, विवरण, अभिलेख या रजिस्टर की या ऐसे दस्तावेज के किसी भाग की सत्यापित प्रतिलिपि प्राप्त करने का हकदार होगा।

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 धारा 219

प्रत्यायोजन - राज्य सरकार परिषद को या अपने अधीनस्थ किसी अन्य अधिकारी या प्राधिकारी को नियमावली बनाने की शक्ति से भिन्न इस संहिता के अधीन प्रदत्त किन्हीं शक्तियों को अधिसूचना द्वारा, प्रत्यायोजित कर सकती है जिनका प्रयोग ऐसी निबन्धनों और शर्तो, जैसी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जायें, के अधीन किया जायेगा।

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 धारा 218


संहिता के उपबन्धों से छूट देने की शक्ति राज्य सरकार अपने द्वारा या केन्द्रीय सरकार द्वारा या किसी स्थानीय प्राधिकारी द्वारा स्वामित्व में रखे गए किसी भूमि को इस संहिता के सभी या किसी उपबन्ध के लागू होने से अधिसूचना द्वारा छूट प्रदान कर सकती है और इसी प्रकार किसी अधिसूचना को रद्द या उपान्तरित कर सकती है।

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 धारा 228

सीमा चिन्हों के नाश आदि के लिए नुकसानी- 
(1) यदि कोई व्यक्ति अध्याय चार के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन विधिपूर्वक परिनिर्मित किसी सीमा चिन्ह को जान बूझकर नष्ट करता है या क्षति पहुँचाता है या विधिपूर्ण प्राधिकार के बिना हटाता है तो उसे तहसीलदार द्वारा इस प्रकार नष्ट किये गये, क्षति पहुँचाये गये या हटाये गये प्रत्येक सीमा चिन्ह के लिये एक हजार रुपये से अनधिक की ऐसी धनराशि जो तहसीलदार की राय में इसे पुनःस्थापित करने के व्यय को पूरा करने और इतला करने वाले को पुरस्कार देंगे, यदि कोई हो, के लिए आवश्यक हो, का भुगतान करने का आदेश दिया जा सकता है।

(2) उपधारा (1) के अधीन नुकशानी की दूराली, भारतीय दण्ड संहिता के अधीन ऐरो नाश क्षति या हटाने के संबंध में किये गये किसी अपराध के लिये अभियोजन से विवर्जित नहीं करेगी।

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 धारा 227

सीमा चिन्हों के नाश आदि के लिए नुकसानी- (1) यदि कोई व्यक्ति अध्याय चार के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन विधिपूर्वक परिनिर्मित किसी सीमा चिन्ह को जान बूझकर नष्ट करता है या क्षति पहुँचाता है या विधिपूर्ण प्राधिकार के बिना हटाता है तो उसे तहसीलदार द्वारा इस प्रकार नष्ट किये गये, क्षति पहुँचाये गये या हटाये गये प्रत्येक सीमा चिन्ह के लिये एक हजार रुपये से अनधिक की ऐसी धनराशि जो तहसीलदार की राय में इसे पुनःस्थापित करने के व्यय को पूरा करने और इतला करने वाले को पुरस्कार देंगे, यदि कोई हो, के लिए आवश्यक हो, का भुगतान करने का आदेश दिया जा सकता है।

(2) उपधारा (1) के अधीन नुकशानी की दूराली, भारतीय दण्ड संहिता के अधीन ऐरो नाश क्षति या हटाने के संबंध में किये गये किसी अपराध के लिये अभियोजन से विवर्जित नहीं करेगी।

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 धारा 239

अध्याय-सोलह

निरसन और अपवाद

230 निरसन (1) प्रथम अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमन एतद्वारा निरसित किए जाते हैं। (2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी ऐसे अधिनियमन के निरसन से निम्नलिखित पर प्रभाव नहीं पडेगा

(क) उत्तराखण्ड राज्य में ऐसे किसी अधिनियमन के लागू रहने पर: (ख) किसी अधिनियमन के पूर्व प्रवर्तन या उसके अधीन सम्यक रूप से की गयी या सहन की गयी किसी बात पर या

(ग) कोई अन्य अधिनियमन जिसमें ऐसा अधिनियमन उपयोजित राम्मिलित या निर्दिष्ट किया गया हो या

(घ) पहले से कुछ भी किए गए या सहन किए गए कार्य की विधिमान्यता, अविधिमान्यता प्रभाव या परिणाग या पहले से अर्जित प्रोदभूत या उपगत कोई अधिकार, हक या बाध्यता या दायित्व जिसमें विशेष रूप से सभी परिसम्पत्तियों को राज्य में निहित करना और इसमें सभी मध्यवर्तियों के सभी अधिकार, हक और हित को समाप्त करना सम्मिलित है; या इसके सम्बन्ध में कोई उपवार या कार्यवाही, या किसी ऋण का या से निबन या उन्मोवन, शास्ति, बाध्यता, दायित्व, दावा या मांग, या पहले से स्वीकृत कोई क्षतिपूर्ति या विगत में किए गए किसी कार्य या वस्तु का सबूत या

(ङ) विधि का कोई सिद्धान्त, नियम या स्थापित अधिकारिता, अभिवचन का रूप या माध्यम प्रथा या प्रक्रिया या विद्यमान उपयोग, रूदि, विशेषाधिकार निर्बन्धन, छूट, पद या नियुक्तिः

परन्तु किसी ऐसे अधिनियम के अधीन किसी कृत, कार्य या कार्यवाही को जिसमें बनाया गया कोई नियम, नियम संग्रह, निर्धारण, नियुक्तियाँ एवं अन्तरण जारी की गयी अधिसूचनाएं, सम्मन, नोटिस, चारण्ट और उद्घोषणा, प्रदत्त शक्ति, दिया गया पट्टा, नियम सीमा विन्ह, तैयार किया गया अधिकार अभिलेख और अन्य अभिलेख अर्जित अधिकार और उपगत दायित्व भी सम्मिलित है, जहाँ तक वे इस संहिता के उपबन्धों से असंगत न हो, इस संहिता के तदनुरूप उपबन्धों के अधीन कृत कार्य या कार्यवाही समझा जायेगा और तदनुसार प्रवृत्त बना रहेगा जब तक कि इरा रांहिता के अधीन कृत किसी कार्य या कार्यवाही से अधिक्रगित न हो जाय।

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 धारा 230

 निरसन (1) प्रथम अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमन एतद्वारा निरसित किए जाते हैं। (2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी ऐसे अधिनियमन के निरसन से निम्नलिखित पर प्रभाव नहीं पडेगा

(क) उत्तराखण्ड राज्य में ऐसे किसी अधिनियमन के लागू रहने पर: (ख) किसी अधिनियमन के पूर्व प्रवर्तन या उसके अधीन सम्यक रूप से की गयी या सहन की गयी किसी बात पर या

(ग) कोई अन्य अधिनियमन जिसमें ऐसा अधिनियमन उपयोजित राम्मिलित या निर्दिष्ट किया गया हो या

(घ) पहले से कुछ भी किए गए या सहन किए गए कार्य की विधिमान्यता, अविधिमान्यता प्रभाव या परिणाग या पहले से अर्जित प्रोदभूत या उपगत कोई अधिकार, हक या बाध्यता या दायित्व जिसमें विशेष रूप से सभी परिसम्पत्तियों को राज्य में निहित करना और इसमें सभी मध्यवर्तियों के सभी अधिकार, हक और हित को समाप्त करना सम्मिलित है; या इसके सम्बन्ध में कोई उपवार या कार्यवाही, या किसी ऋण का या से निबन या उन्मोवन, शास्ति, बाध्यता, दायित्व, दावा या मांग, या पहले से स्वीकृत कोई क्षतिपूर्ति या विगत में किए गए किसी कार्य या वस्तु का सबूत या

(ङ) विधि का कोई सिद्धान्त, नियम या स्थापित अधिकारिता, अभिवचन का रूप या माध्यम प्रथा या प्रक्रिया या विद्यमान उपयोग, रूदि, विशेषाधिकार निर्बन्धन, छूट, पद या नियुक्तिः

परन्तु किसी ऐसे अधिनियम के अधीन किसी कृत, कार्य या कार्यवाही को जिसमें बनाया गया कोई नियम, नियम संग्रह, निर्धारण, नियुक्तियाँ एवं अन्तरण जारी की गयी अधिसूचनाएं, सम्मन, नोटिस, चारण्ट और उद्घोषणा, प्रदत्त शक्ति, दिया गया पट्टा, नियम सीमा विन्ह, तैयार किया गया अधिकार अभिलेख और अन्य अभिलेख अर्जित अधिकार और उपगत दायित्व भी सम्मिलित है, जहाँ तक वे इस संहिता के उपबन्धों से असंगत न हो, इस संहिता के तदनुरूप उपबन्धों के अधीन कृत कार्य या कार्यवाही समझा जायेगा और तदनुसार प्रवृत्त बना रहेगा जब तक कि इरा रांहिता के अधीन कृत किसी कार्य या कार्यवाही से अधिक्रगित न हो जाय।

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